आचार्य शान्तिसागर जी छाणी महाराज ससंघ टीकमगढ़ पधारे, उस समय भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था। टीकमगढ़ एक छोटा सा राज्य था और महाराज प्रतापसिंह राज्य करते थे। उनके बगीचा में मुनिसंघ वृक्षों के तले ठहरा क्योंकि वहाँ मकान नहीं बने थे। भारी भीड़ प्रवचन सुनने वहाँ पहुँचती थी। दो दिन के बाद संघ विहार करने की तैयारी में था, तब राजा के पास खबर पहुँची कि जैन मुनिसंघ आपके बगीचा में ठहरा था आज-विहार कर रहा है। राजा साहब ने एक सिपाही को भेजकर कहलवाया कि अभी संघ वहीं रुके, हमारे राजा साहब दर्शनों को आना चाहते थे। इस आज्ञा पर मुनिसंघ वहां रुका नहीं और विहार कर गया। महाराजा प्रतापसिंह ने छह किलोमीटर पैदल चल कर मुनिसंघ के दर्शन किए, उनसे धर्म के बारे में चर्चा की और बड़े प्रभावित हुए। उनकी निर्भीकता पर तो और भी प्रसन्न हुए। सच है मुनि किसी की आज्ञा पर नहीं रुकते और न विहार करते। अगर राजा किसी नगर का राजा है तो मुनि भी अपने मन और तन का राजा है।